नवरात्रमें प्रतिदिन नौ दिनोंतक ब्राह्म मुहूर्तमें नित्य-कर्म तथा स्नानादिसे निवृत्त हो शुद्ध वस्त्र धारणकर कुशाके आसनपर सुखासन लगाकर बैठ जाइये । भगवान् श्रीराम के कल्याणकारी स्वरूप में चित्तको एकाग्र करके इस महान् फलदायी स्तोत्रका कम-से-कम ग्यारह बार और यदि यह न हो सके तो सात बार नियमित रूपसे प्रतिदिन पाठ कीजिये। पाठ करनेवालेकी श्रीरामकी शक्तियोंके प्रति जितनी अखण्ड श्रद्धा होगी, उतना ही फल प्राप्त होगा। वैसे 'रामरक्षाकवच' कुछ लंबा है, पर इस संक्षिप्तरूपसे भी काम चल सकता है। पूर्ण शान्ति और विश्वाससे इसका जाप होना चाहिये, यहाँतक कि यह कण्ठस्थ हो जाय ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः श्रीसीतारामचन्द्रो देवता अनुष्टुप् छन्दः सीता शक्तिः श्रीमान् हनुमान् कीलकं श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ।
इस रामरक्षास्तोत्र-मन्त्रके वुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचन्द्र देवता हैं, अनुष्टुप् छन्द है, सीता शक्ति हैं, श्रीमान् हनुमान्जी कीलक हैं तथा श्रीरामचन्द्रजीकी प्रसन्नता के लिये रामरक्षास्तोत्रके जपमें विनियोग किया जाता है ।
जो धनुष-बाण धारण किये हुए हैं, बद्ध पद्मासनसे विराजमान हैं, पीताम्बर पहने हुए हैं, जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमलदलसे स्पर्धा करते तथा वामभागमें विराजमान श्रीसीताजी के मुखकमलसे मिले हुए हैं, उन आजानुबाहु, मेघश्याम, नाना प्रकार के अलंकारोंसे विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी श्रीरामचन्द्रजीका ध्यान करे।
श्रीरघुनाथजीका चरित्र सौ करोड़ विस्तारवाला है और उसका एक-एक अक्षर भी मनुष्योंके महान् पापोंको नष्ट करनेवाला है ॥ १ ॥
जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण, कमल-नयन, जटाओंके मुकुटसे सुशोभित, हाथोंमें खड्ग, तूणीर, धनुष और बाण धारण करनेवाले, राक्षसों के संहारकारी तथा संसारकी रक्षा के लिये अपनी लीलासे ही अवतीर्ण हुए हैं, उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान् रामका जानकी और लक्ष्मणजीके सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनी रामरक्षाका पाठ करे । मेरे सिरकी राघव और ललाटकी दशरथात्मज रक्षा करें ॥ २-४ ॥
कौसल्यानन्दन नेत्रोंकी रक्षा करें, विश्वामित्रप्रिय कानोंको सुरक्षित रक्खें तथा यज्ञरक्षक घ्राणकी और सौमित्रिवत्सल मुखकी रक्षा करें ॥ ५ ॥
मेरी जिह्वाकी विद्यानिधि, कण्ठकी भरतवन्दित, कंधोंकी दिव्यायुध और भुजाओंकी भग्नेशकार्मुक ( महादेवजीका धनुष तोड़नेवाले ) रक्षा करें ॥ ६ ॥
हाथोंकी सीतापति, हृदयकी जामदग्न्यजित् ( परशुरामजीको जीतनेवाले ), मध्यभागकी खरध्वंसी ( खर नाम राक्षसका नाश करनेवाले ) और नाभिकी जाम्बवदाश्रय (जाम्बवान् के आश्रयस्वरूप) रक्षा करें ॥७॥
कमरकी सुग्रीवेश ( सुग्रीव के स्वामी ), सक्थियोंकी हनुमत्प्रभु और ऊरुओंकी राक्षसकुल-विनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें ॥ ८ ॥
जानुओंकी सेतुकृत, जङ्घाओंकी दशमुखान्तक (रावणको मारनेवाले), चरणोंकी विभीषणश्रीद ( विभीषणको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले ) और सम्पूर्ण शरीरकी श्रीराम रक्षा करें ॥ ९ ॥
जो पुण्यवान् पुरुष रामबलसे सम्पन्न इस रक्षाका पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान्, विजयी और विनयसम्पन्न हो जाता है ॥ १० ॥
जो जीव पाताल, पृथ्वी अथवा आकाश में विचरते हैं और जो छद्मवेशसे घूमते रहते हैं, वे रामनामोंसे सुरक्षित पुरुषको देख भी नहीं सकते ॥ ११ ॥
'राम', 'रामभद्र', 'रामचन्द्र-इन नामोंका स्मरण करनेसे मनुष्य पापोंसे लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता है ॥ १२ ॥
जो पुरुष जगतको विजय करनेवाले एकमात्र मन्त्र रामनामसे सुरक्षित इस स्तोत्रको कण्ठमें धारण करता है ( अर्थात् इसे कण्ठस्थ कर लेता है), सम्पूर्ण सिद्धियाँ उसके हस्तगत हो जाती हैं ॥ १३ ॥
जो मनुष्य वज्रपञ्जर नामक इस रामकवचका स्मरण करता है, उसकी आज्ञाका कहीं उल्लङ्घन नहीं होता और उसे सर्वत्र जय और मङ्गलकी प्राप्ति होती है ॥१४॥
श्रीशंकरने रात्रिके समय स्वप्न में इस रामरक्षाका जिस प्रकार आदेश दिया था, उसी प्रकार प्रातःकाल जागनेपर बुधकौशिकने इसे लिख दिया ॥ १५ ॥
जो मानो कल्पवृक्षों के बगीचे हैं तथा समस्त आपत्तियोंका अन्त करनेवाले हैं, जो तीनों लोकोंमें परम सुन्दर हैं, वे श्रीमान् राम हमारे प्रभु हैं ॥ १६ ॥
जो तरुण अवस्थावाले, रूपवान्, सुकुमार, महाबली, कमलके समान विशाल नेत्रोंवाले, चीरवस्त्र और कृष्णमृगचर्मधारी, फल-मूल आहार करनेवाले, संयमी, तपस्वी, ब्रह्मचारी, सम्पूर्ण जीवोंको शरण देनेवाले, समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसकुलका नाश करनेवाले हैं, वे रघुश्रेष्ठ दशरथकुमार राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें ॥ १७-१९ ॥
जिन्होंने संधान किया हुआ धनुष ले रक्खा है, जो बाणका स्पर्श कर रहे हैं तथा अक्षय बाणोंसे युक्त तूणीर लिये हुए हैं, वे राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करनेके लिये मार्गमें सदा ही मेरे आगे चलें ॥ २० ॥
सर्वदा उद्यत, कवचधारी, हायमें खड्ग लिये, धनुषबाण धारण किये तथा युवा अवस्थावाले भगवान् राम लक्ष्मणजीसहित आगे-आगे चलकर हमारे मनोरथोंकी रक्षा करें ॥ २१ ॥
(भगवान का कथन है कि ) राम, दाशरथि, शूर, लक्ष्मणानुचर, बली, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघूत्तम, वेदान्तवेद्य, यज्ञेश, पुराणपुरुषोत्तम, जानकीवल्लभ, श्रीमान् और अप्रमेयपराक्रम – इन नामोंका
नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करनेसे मेरा भक्त अश्वमेधयज्ञसे भी अधिक फल प्राप्त करता है - इसमें कोई संदेह नहीं है ॥ २२-२४ ॥
जो लोग दुर्वादलके समान श्यामवर्ण, कमलनयन, पीताम्बरधारी भगवान् रामका इन दिव्य नामोंसे स्तवन करते हैं, वे संसारचक्र में नहीं पड़ते ॥ २५ ॥
लक्ष्मणजीके पूर्वज, रघुकुलमें श्रेष्ठ, सीताजीके स्वामी, अतिसुन्दर, ककुत्स्थकुलनन्दन, करुणासागर, गुणनिधान, ब्राह्मणभक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथपुत्र, श्याम और शान्तमूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में
सुन्दर, रघुकुलतिलक, राघव और रावणारि भगवान् रामकी मैं वन्दना करता हूँ ॥ २६ ॥
राम, रामभद्र, रामचन्द्र, विधातृवरूप, रघुनाथ, प्रभु सीतापतिको नमस्कार है ॥ २७ ॥
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरताग्रज भगवान् राम ! हे रणधीर प्रभु राम ! आप मेरे आश्रय होइये ॥ २८ ॥
मैं श्रीरामचन्द्र के चरणोंका मनसे स्मरण करता हूँ, श्रीरामचन्द्र के चरणोंका वाणीसे कीर्तन करता हूँ, श्रीरामचन्द्र के चरणोंको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्रीरामचन्द्र के चरणोंकी शरण लेता हूँ ॥ २९ ॥
राम मेरी माता हैं, राम मेरे पिता हैं, राम स्वामी हैं और राम ही मेरे सखा हैं। दयामय रामचन्द्र ही मेरे सर्वख हैं, उनके सिवा और किसीको मैं नहीं जानताबिल्कुल नहीं जानता ॥ ३० ॥
जिनकी दायीं ओर लक्ष्मणजी, बायीं ओर जानकीजी और सामने हनुमानजी विराजमान हैं, उन रघुनाथजीकी मैं वन्दना करता हूँ ॥ ३१ ॥
जो सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रणक्रीडामें धीर, कमलनयन, रघुवंशनायक, करुणामूर्ति और करुणाके भण्डार हैं, उन श्रीरामचन्द्रजीकी मैं शरण लेता हूँ ॥ ३२ ॥
जिनकी मनके समान गति और वायुके समान वेग है, जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ हैं, उन पवननन्दन वानराग्रगण्य श्रीरामदूतकी मैं शरण लेता हूँ ॥ ३३ ॥
कवितामयी डालीपर बैठकर मधुर अक्षरोंवाले रामराम इस मधुर नामको कूजते हुए वाल्मीकिरूप कोकिलकी मैं वन्दना करता हूँ ॥ ३४ ॥
आपत्तियोंको हरनेवाले तथा सब प्रकारकी सम्पत्ति प्रदान करनेवाले लोकाभिराम भगवान् रामको मैं बार बार नमस्कार करता हूँ ॥ ३५ ॥
'राम-राम' ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसारबीजोंको भून डालनेवाला, समस्त सुख-सम्पत्तिकी प्राप्ति करानेवाला तथा यमदूतोंको भयभीत करनेवाला है ॥ ३६ ॥
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजयको प्राप्त होते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान् रामका भजन करता हूँ। जिन रामचन्द्रजीने सम्पूर्ण राक्षससेनाका ध्वंस कर दिया था, मैं उनको प्रणाम करता हूँ । रामसे बड़ा और कोई आश्रय नहीं है। मैं उन रामचन्द्रजीका दास हूँ। मेरा चित्त सदा राममें ही लीन रहे; हे राम ! आप मेरा उद्धार कीजिये ॥ ३७ ॥
( श्रीमहादेवजी पार्वतीजीसे कहते हैं—) हे सुमुखि ! रामनाम विष्णुसहस्रनामके तुल्य है। मैं सर्वदा 'राम, राम, राम' इस प्रकार मनोरम रामनाममें ही रमण करता हूँ ॥ ३८ ॥