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<verse text="A" n="4">
अयि शतखण्ड-विखण्डित-रुण्ड-वितुण्डित-शुण्ड-गजाधिपते

रिपु-गज-गण्ड-विदारण-चण्डपराक्रम-शौण्ड-मृगाधिपते ।

निज-भुजदण्ड-निपातित-चण्ड-निपाटित-मुण्ड-भटाधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।।।
 
॥</verse>
<verse text="A" n="5">
अयि रणदुर्मद-शत्रु-वधोदित-दुर्धर-निर्जर-शक्ति-भृते

चतुर-विचार-धुरीण-महाशय-दूत-कृत-प्रमथाधिपते ।

दुरित-दुरीह-दुराशय-दुर्मति-दानव-दूत-कृतान्तमते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।।।
 
॥</verse>
<verse text="A" n="6">
अयि निजहुंकृतिमात्र-निराकृत-धूम्रविलोचन-धूम्रशते

समर-विशोषित-शोणितबीज-समुद्भ​वशोणित-बीज-लते ।

शिव-शिव-शुम्भनिशुम्भमहाहव-तर्पित-भूतपिशाचपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।।।॥</verse>
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