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शिञ्जितेनऽव्यक्तशब्देन मोहितो भूतपतिः शङ्करो यया सा तथा ।

नटितेति । आदिकर्मणि तिष्ठा । नटितौ समारब्धनटनौ, यौ नटार्धनटी

च नटनायकश्च अर्धनारीश्वररूपौ ताभ्यां बहुतरनटबहुतरनटीसमुदायेन

वा नाटिते प्रवर्तिते नाट्चे सुगानरते । जय जयेति । ।।१०।।
 
॥</p>
<p text="C" n="10">
जय माता | महिषासुरमर्दिनी । जय हो रम्यकेशपाशधारिणी

शैलपुत्री ! युद्ध में तुम्हारी विजय होने पर कुछ लोग जय-जय,

जय-जय ऐसा मानो जप करने लगे थे । कुछ लोग जयकार के

साथ स्तुति बोल रहे थे । इस प्रकार संपूर्ण विश्व तुम्हारी प्रशंसा-स्तुति

करने में लगा था । और तुम भी आनन्दनृत्य में शामिल हो कर

झण-झण झिम-झिम आवाज करते हुए नूपुर के झनकार से भूतपति

शंकर को मोहित कर रही थी। फिर आधे नटों से और आधी नटियों

से शोभित विशाल नाटक में शंकर के साथ स्वयं भी नृत्य करने

लग गयी थी । अहा | क्या उस समय की शोभा रही होगी । धन्य

हो ।।१०।।
 
॥</p>
<p text="D" n="10" merge-text="true">
Oh Goddess, who is praised by the World

which is engrossed in a praise-song in which

the word "jaya" occurs last, whose victory is

fit to be muttered by (the words) "jaya",

"jaya", who tempts Sankara, the Lord of</p>
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