( १ )
( २ )
( ३ )
( ४ )
* श्रीहरिः *
( १ )
[ जिस समय ] कौरव और पाण्डवोंके सामने भरी सभामे दुःशासनने द्रौपदीके वस्त्र और बालोंको पकड़कर खींचा उस समय, जिसका कोई दूसरा नाथ नहीं है ऐसी द्रौपदीने रोकर पुकारा - 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !'
( २ )
'हे श्रीकृष्ण ! हे विष्णो ! हे मधुकैटभको मारनेवाले ! हे भक्तोंके ऊपर अनुकम्पा करनेवाले ! हे भगवन् ! हे मुरारे ! हे केशव ! हे लोकेश्वर ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो ।'
( ३ )
जिनकी चित्तवृत्ति मुरारिके चरणकमलोंमें लगी हुई है वे सभी गोपकन्याएँ दूध-दही बेचनेकी इच्छासे घरसे चलीं । उनका मन तो मुरारिके पास था; अतः प्रेमवश सुध-बुध भूल जानेके कारण 'दही लो दही' इसके स्थानमें जोर-जोरसे 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' आदि पुकारने लगीं।
( ४ )
ओखलीमें धान भरे हुए हैं, उन्हें मुग्धा गोपरमणियाँ मूसलोंसे कूट रही हैं, और कूटते-कूटते कृष्णप्रेममें विभोर होकर 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इस प्रकार गायन करती जाती हैं।
( ५ )
( ६ )
( ७ )
( ८ )
( ९ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( ५ )
कोई कमलनयनी बाला मनोविनोदके लिये पाले हुए अपने करकमलपर बैठे किंशुककुसुमके समान रक्तवर्ण चोंचवाले सुग्गेको पढ़ा रही थी – पढ़ो तो तोता ! 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !'
( ६ )
प्रत्येक घरमें समूह-की-समूह गोपाङ्गनाएँ पींजरोंमें पाली हुई अपनी मैनाओंसे उनकी लड़खड़ाती हुई वाणीको क्षण-क्षणमें 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इत्यादि रूपसे कहलानेमें लगी रहती थीं ।
( ७ )
पालनेमें पौढ़े हुए अपने नन्हें बच्चेको सुलाती हुई सभी गोपकन्याएँ ताल-स्वरके साथ 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव' इस पदको ही गाती जाती थीं ।
( ८ )
हाथमे माखनका गोला लेकर मैया यशोदाने आँखमिचौनीकी क्रीडामें व्यस्त बलरामके छोटे भाई कृष्णको बालकोंके बीचसे पकड़कर पुकारा - 'अरे गोविन्द ! अरे दामोदर ! अरे माधव !'
( ९ )
विचित्र वर्णमय आभरणोंसे अत्यन्त सुन्दर प्रतीत होनेवाली हे मुखकमलकी राजहंसीरूपिणी मेरी रसने ! तू सर्वप्रथम 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव' इस ध्वनिका ही विस्तार कर ।
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( १० )
( ११ )
( १२ )
( १३ )
( १४ )
गोविन्द-दामोदर-स्त्रोत्र
( १० )
अपनी गोदमें बैठकर दूध पीते हुए बालगोपालरूपधारी भगवान् लक्ष्मीकान्तको लक्ष्य करके प्रेमानन्दमें मग्न हुई यशोदामैया इस प्रकार बुलाया करती थीं - 'ऐ मेरे गोविन्द ! ऐ मेरे दामोदर ! ऐ मेरे माधव ! ज़रा बोलो तो सही ?'
( ११ )
अपने समवयस्क गोपचालकोंके साथ गोष्ठमें खेलते हुए अपने प्यारे पुत्र कृष्णको यशोदामैयाने अत्यन्त स्नेहके साथ पुकारा - 'अरे ओ गोविन्द ! ओ दामोदर ! अरे माधव ! [कहाँ चला गया ? ] '
( १२ )
अधिक चपलता करनेके कारण यशोदामैयाने गौ बाँधनेकी रस्सीसे खूब कसकर ओखलीमें उन घनश्यामको बाँध दिया, तब तो वे माखनभोगी कृष्ण धीरे-धीरे [ आँखें मलते हुए ] सिसक-सिसककर 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' कहते हुए रोने लगे ।
( १३ )
श्रीनन्दनन्दन अपने ही घरके आँगनमें अपने हाथके कंकणसे खेलनेमें लगे हुए हैं, उसी समय मैयाने धीरेसे जाकर उनके दोनों कमलनयनोंको अपनी हथेलीसे मूँद लिया तथा दूसरे हाथमें नवनीतका गोला लेकर प्रेमपूर्वक कहने लगी - 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! [ लो देखो, यह माखन खा लो ] ।'
( १४ )
व्रजके प्रत्येक घरमें गोपाङ्गनाएँ एकत्र होनेका अवसर पानेपर झुण्ड-की-झुण्ड आपसमें मिलकर उन मनमोहन माघवके 'गोविन्द, दामोदर, माघव' इन पवित्र नामोंको पढ़ा करती हैं ।
( १५ )
( १६ )
( १७ )
( १८ )
( १९ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( १५ )
जिनका मुखारविन्द बड़ा ही मनोहर है, जो अपने विम्बके समान अरुण अधरोंपर रखकर वंशीकी मधुर ध्वनि कर रहे हैं तथा जो कदम्बके तले गौ, गोप और गोपियोंके मध्यमें विराजमान हैं उन भगवान्का 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इस प्रकार कहते हुए सदा स्मरण करना चाहिये ।
( १६ )
ब्रजाङ्गनाएँ ब्राह्ममुहूर्तमें उठकर और उन यशुमतिनन्दनकी बालक्रीड़ाओंकी बार्तोको याद करके दही मथते-मथते 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव' इन पदोंको उच्च स्वरसे गाया करती हैं।
( १७ )
[ दघि मथकर माताने माखनका लौंदा रख दिया था। माखनभोगी कृष्णकी दृष्टि पड़ गयी, झट उसे धीरेसे उठा लाये ] कुछ खाया कुछ बाँट दिया। जब ढूँढ़ते-ढूँढ़ते न मिला तो यशोदामैयाने आपपर सन्देह करते हुए पूछा - 'हे मुरारे ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! ठीक-ठीक बता माखनका लौंदा क्या हुआ ?'
( १८ )
जिसके हृदयमें प्रेमकी बाढ़ आ रही है ऐसी माता यशोदा घरको लीपकर दही मथने लगी । तब और सब गोपाङ्गनाएँ तथा सखियाँ मिलकर 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इस पदका गान करने लगीं ।
( १९ )
किसी दिन प्रातःकाल ज्यों ही माता यशोदा दहीभरे भाण्डमें मथानीको छोड़कर उठी त्यों ही उसकी दृष्टि शय्यापर बैठे हुए मनमोहन मुकुन्दपर पड़ी। सरकारको देखते ही वह प्रेमसे पगली हो गयी और 'मेरा गोविन्द ! मेरा दामोदर ! मेरा माधव !' ऐसा कहकर तरह-तरहसे गाने लगी ।
( २० )
( २१ )
( २२ )
( २३ )
( २४ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( २० )
क्रीडाविहारी मुरारि बालकोंके साथ खेल रहे हैं [ अभीतक न स्नान किया है न भोजन ] अतः प्रेममें विह्वल हुई माता उन्हें स्नान और भोजनके लिये पुकारने लगी - 'अरे ओ गोविन्द ! ओ दामोदर ! ओ माधव ! [ आ बेटा ! आ ! पानी ठण्डा हो रहा है जल्दीसे नहा ले और कुछ खा ले ] ।'
( २१ )
नारद आदि ऋषि 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इस प्रकार प्रार्थना करते हुए घरमें सुखपूर्वक सोये हुए उन पुराणपुरुष बालकृष्णकी शरणमे आये; अतः उन्होंने श्रीअच्युतमें तन्मयता प्राप्त कर ली ।
( २२ )
वेदज्ञ ब्राह्मण प्रातःकाल उठकर और अपने नित्यनैमित्तिक कमको पूर्णकर वेदपाठके अन्तमें नित्य ही 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन मञ्जुल नामोंका कीर्तन करते हैं ।
( २३ )
वृन्दावनमें श्रीवृषभानुकुमारीको बनवारीके वियोगसे विह्वल देख गोपगण और गोपियाँ अपने कमलनयनोंसे नीर बहाती हुई 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माघव !' आदि कहकर पुकारने लगीं ।
( २४ )
प्रातःकाल होनेपर जब गौएँ वनमें चरने चली गयीं तब उनकी रक्षाके लिये यशोदामैया शय्यापर शयन करते हुए बालकृष्णको मीठी-मीठी थपकियोंसे जगाती हुई बोलीं- 'बेटा गोबिन्द ! मुन्ना माधव ! लल्लू दामोदर ! [ उठ, जा गौओंको चरा ला ] ।'
( २५ )
( २६ )
( २७ )
( २८ )
( २९ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( २५ )
केवल वायु, जल और पत्तोंके खानेसे जिनके शरीर पवित्र हो गये हैं, ऐसे प्रबालके समान शोभायमान लम्बी-लम्बी एवं कुछ अरुण रंगकी जटाओंवाले मुनिगण पवित्र वृक्षोंकी छायामें विराजमान होकर निरन्तर 'गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' इन नामोंका पाठ करते हैं ।
( २६ )
श्रीवनमालीके विरहमें विह्वल हुई ब्रजाङ्गनाएँ उनके विषयमें विविध प्रकारकी बातें कहती हुई लोक-लजाको तिलाञ्जलि दे बड़े आर्त्तस्वरसे 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' कहकर जोर-जोरसे रोने लगीं ।
( २७ )
गोपी श्रीराधिकाजी किसी दिन मणियोंके पिंजड़ेमें पले हुए तोतेसे बार-बार 'आनन्दकन्द ! व्रजचन्द्र ! कृष्ण ! गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' इन नामोंको बुलवाने लगीं।
( २८ )
कमलनयन श्रीकृष्णचन्द्रको किसी गोपबालककी चोटी बछड़ेकी पूँछके बालोंसे बाँधते देख मैया प्यारसे उनकी ठोढ़ीको पकड़कर कहने लगीं - 'मेरा गोविन्द ! मेरा दामोदर ! मेरा माधव !'
( २९ )
प्रातःकाल हुआ, ग्वाल-बालोंकी मित्रमण्डली हाथोंमें वेतकी छड़ी और लाठी ले गौओंको चरानेके लिये निकली । तब वे अपने प्यारे सखा अनन्त आदिपुरुष श्रीकृष्णको 'गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' कह-कहकर बुलाने लगे ।
( ३० )
( ३१ )
( ३२ )
( ३३ )
( ३४ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( ३० )
जिस समय कालियनागका मर्दन करनेके लिये कन्हैया कदम्बके वृक्षसे कूदे, उस समय गोपाङ्गनाएँ और गोपगण वहाँ आकर 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माघव !' कहकर बड़े ज़ोरसे रोने लगे ।
( ३१ )
जिस समय श्रीकृष्णचन्द्रने कंसके धनुर्यज्ञोत्सवमें सम्मिलित होनेके लिये अक्रूरजीके साथ मथुरामें प्रवेश किया, उस समय पुरवासीजन 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! तुम्हारी जय हो, जय हो' ऐसा कहने लगे ।
( ३२ )
जब कंसके दूत अक्रूरजी वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण और बलरामको वृन्दावनसे दूर ले गये तब अपने घरमें बैठी हुई यशोदाजी 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव !' कह-कहकर रुदन करने लगीं ।
( ३३ )
यशोदानन्दन बालक श्रीकृष्णको कालियहदमें कालियनागसे जकड़ा हुआ सुनकर गोपबालाएँ रास्तेमें लोटती हुई 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव !' कहकर जोरोंसे रुदन करने लगीं ।
( ३४ )
अक्रूरके रथपर चढ़कर मथुरा जाते हुए श्रीकृष्णको देख समस्त गोपबालाएँ वियोगके कारण अधीर होकर कहने लगीं - ' हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव ! [ हमें छोड़कर तुम कहाँ जाते हो ] ?'
( ३५ )
( ३६ )
(३७)
( ३८ )
( ३९ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( ३५ )
श्रीराधिकाजी श्रीकृष्णके अलग हो जानेपर कमलवनमें कुसुमशय्यापर सोकर अपने विकसित कमलसदृश लोचनोंसे आँसू बहाती हुई 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव !' कहकर क्रन्दन करने लगीं।
( ३६ )
माता-पिता आदिसे घिरी हुई श्रीराधिकाजी घरके भीतर प्रवेशकर विलाप करने लगी कि 'हे विश्वनाथ ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! तुम आकर मेरी रक्षा करो ! रक्षा करो !!'
( ३७ )
रात्रिका समय था, किसी गोपीको भ्रम हो गया कि वृन्दावनविहारी इस समय वनमें विराजमान हैं। बस फिर क्या था, झट उसी ओर चल दी । किन्तु जब उसने निर्जन वनमें वनमालीको न देखा, तो डरसे काँपती हुई 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव !' कहने लगी ।
( ३८ )
[ वनमें न भी जायँ ] अपने घरमें ही सुखसे शय्यापर शयन करते हुए भी जो लोग 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इन विष्णुभगवान्के पवित्र नामोंको निरन्तर कहते रहते हैं वे निश्चय ही भगवान्की तन्मयता प्राप्त कर लेते हैं ।
( ३९ )
कमललोचना राघाको श्रीगोविन्दकी विरहव्यथासे पीडित देख कोई सखी अपने प्रफुल्ल कमलसदृश नयनोंसे नीर बहाती हुई 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माघव !" कहकर रुदन करने लगी ।
( ४० )
( ४१ )
( ४२ )
( ४३ )
( ४४ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( ४० )
हे रसोंको चखनेवाली जिह्वे ! तुझे मीठी चीज बहुत अधिक प्यारी लगती है, इसलिये मैं तेरे हितकी एक बहुत ही सुन्दर और सच्ची बात बताता हूँ । तू निरन्तर ' हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माघव !' इन मधुर मञ्जुल नामोंकी आवृत्ति किया कर ।
( ४१ )
वेदवेत्ता विद्वान् 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन नामोंको ही लोगोंकी बड़ी-से-बड़ी विकट व्याधिको विच्छेद करनेवाला वैद्य और संसारके आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक तीनों तापोंके नाशका बढ़िया बीज बतलाते हैं ।
( ४२ )
अपने पिता दशरथकी आज्ञासे भाई लक्ष्मण और जनकनन्दिनी सीताके साथ श्रीरामचन्द्रजी बीहड़ वनोंके लिये चलने लगे, तब उनकी माता श्रीकौसल्याजी 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! [ हे राम ! हे रघुनन्दन ! हे राघव ! ] ' ऐसा कहकर जोरोंसे विलाप करने लगीं ।
( ४३ )
जब राक्षसराज रावण पञ्चवटीमें जानकीजीको अकेली देख उन्हें हरकर ले जाने लगा तब रामचन्द्रजीके सिवा जिनका दूसरा कोई स्वामी नहीं है ऐसी सीताजी 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव ! [ हे राम ! हे रघुनन्दन ! हे राघव ! ]' कहकर जोरोंसे रुदन करने लगीं ।
( ४४ )
रथमें बिठाकर ले जाते हुए रावणके साथ, रामवियोगिनी सीता हृदयमें अपने स्वामी श्रीरामचन्द्रजीका ध्यान करती हुई 'हा रघुनाथ ! हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव ! [हे राम! हे रघुनन्दन ! हे राघव ! मेरी रक्षा करो ]' इस प्रकार रोती हुई जाने लगी ।
( ४५ )
( ४६ )
( ४७ )
( ४८ )
( ४९ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( ४५ )
जब रावणके साथ सीताजी समुद्रके मध्यमें पहुँचीं तब यह कहकर जोर-जोरसे रुदन करने लगीं - 'हे विष्णो ! हे रघुकुलपते ! हे देवताओंको सुख और असुरोंको दुःख देनेवाले ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! [हे राम! हे रघुनन्दन ! हे राघव !] प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये ।'
( ४६ )
पानी पीते समय जलके भीतरसे जब ग्राहने गजका पैर पकड़ लिया और उसका समस्त दुखी बन्धुओंसे साथ छूट गया तब वह गजराज अधीर होकर अनन्यभावसे निरन्तर 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' ऐसे कहने लगा ।
( ४७ )
अपने पुरोहित शङ्खमुनिके साथ राजा हंसध्वजने अपने पुत्र सुघन्वाको तप्त तैलकी कड़ाहीमें कूदते और 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इन भगवान्के परमपावन नामोंका जप ! करते हुए देखा ।
( ४८ )
[ एक दिन द्रौपदीके भोजन कर लेनेपर असमयमें दुर्वासा ऋषिने शिष्योंसहित आकर भोजन माँगा ] तब वनवासिनी द्रौपदीने भोजन देना स्वीकार कर अपने अन्तःकरणमें स्थित श्रीश्यामसुन्दरको 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' कहकर बुलाया ।
( ४९ )
योगी भी जिन्हें ठीक-ठीक नहीं जान पाते, जो सभी प्रकारकी चिन्ताओंको हरनेवाले और मनोवांछित वस्तुओंको देनेके लिये कल्पवृक्षके समान हैं तथा जिनके शरीरका वर्ण कस्तूरीके समान नीला है उन्हें सदा ही 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन नामोंसे स्मरण करना चाहिये ।
( ५० )
( ५१ )
( ५२ )
( ५३ )
( ५४ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( ५० )
जो मोहरूपी अन्धकारसे व्याप्त और विषयोंकी ज्वालासे सन्तप्त है, ऐसे अथाह संसाररूपी कृपमें मैं पड़ा हुआ हूँ। हे मेरे मधुसूदन ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मुझे अपने हाथका सहारा दीजिये ।
( ५१ )
हे जिह्वे ! मैं तुझीसे एक भिक्षा माँगता हूँ, तू ही मुझे दे । वह यह कि जब दण्डपाणि यमराज इस शरीरका अन्त करने आवें तो बड़े ही प्रेमसे गद्गद स्वरमें 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इन मञ्जुल नामोंका उच्चारण करती रहना ।
( ५२ )
हे जिह्वे! हे रसज्ञे ! संसाररूपी बन्धनको काटनेके लिये तू सर्वदा 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इस नामरूपी मन्त्रका जप किया कर, जो सुलभ एवं सुन्दर है और जिसे व्यास, वसिष्ठादि ऋषियोंने भी जपा है ।
( ५३ )
रे जिह्वे ! तू निरन्तर गोपाल ! वंशीधर ! रूपसिन्धो ! लोकेश ! नारायण ! दीनबन्धो ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इन नामोंका उच्च स्वरसे कीर्तन किया कर !
( ५४ )
हे जिह्वे ! तू सदा ही श्रीकृष्णचन्द्रके 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन मनोहर मञ्जुल नामोंको, जो भक्तोंके समस्त सङ्कटोंकी निवृत्ति करनेवाले हैं, भजती रह ।
( ५५ )
( ५६ )
( ५७ )
( ५८ )
( ५९ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( ५५ )
हे जिहे ! 'गोविन्द ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! गोविन्द ! गोविन्द ! मुकुन्द ! कृष्ण ! गोबिन्द ! गोविन्द ! रथाङ्गपाणे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इन नामोंको तू सदा जपती रह ।
( ५६ )
सुखके अन्तमें यही सार है, दुःखके अन्तमें यही जानने योग्य है और शरीरका अन्त होनेके समय भी यही मन्त्र जपने योग्य है, कौन-सा मन्त्र ? यही कि 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !'
( ५७ )
दुःशासनके दुर्निवार्य वचनोंको स्वीकारकर मृगीके समान भयभीत हुई द्रौपदी किसी-किसी तरह सभामें प्रवेशकर मन-ही-मन 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इस प्रकार भगवान्का स्मरण करने लगी ।
( ५८ )
हे जिह्रे ! तू श्रीकृष्ण ! राधारमण ! ब्रजराज ! गोपाल ! गोवर्धन ! विष्णो ! गोविन्द ! दामोदर ! माघव ! इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह ।
( ५९ )
हे जिह्रे ! तू श्रीनाथ ! सर्वेश्वर ! श्रीविष्णुस्वरूप ! श्रीदेवकीनन्दन ! असुरनिकन्दन ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह ।
( ६० )
( ६१ )
( ६२ )
( ६३ )
( ६४ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( ६० )
हे जिह्रे ! तू 'गोपोपते ! कंसरिपो ! मुकुन्द ! लक्ष्मीपते ! केशव ! वासुदेव ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह ।
( ६१ )
जो व्रजराज व्रजाङ्गनाओंको आनन्दित करनेवाले हैं, जिन्होंने गौओंको चरानेके लिये वनमें प्रवेश किया है; हे जिह्रे ! तू उन्हीं मुरारिके 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह ।
( ६२ )
हे जिह्रे ! तू 'प्राणेश ! विश्वम्भर ! कैटभारे ! वैकुण्ठ ! नारायण ! चक्रपाणे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह ।
( ६३ )
'हे हरे ! हे मुरारे ! हे मधुसूदन ! हे पुराणपुरुषोत्तम ! हे रावणारे ! हे सीतापते श्रीराम ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' - इस नामामृतका हे जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह ।
(६४)
हे जिह्वे ! तू 'श्रीयदुकुलनाथ ! गिरिधर ! कमलनयन ! गौ, गोप और गोपियोंको सुख देनेमें कुशल ! श्रीगोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह ।
( ६५ )
( ६६ )
( ६७ )
( ६८ )
( ६९ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( ६५ )
जिन्होंने पृथ्वीका भार उतारनेके लिये सुन्दर ग्वालका रूप धारण किया है और आनन्दमयी लीला करनेके निमित्त ही शेषजीको अपना भाई बनाया है, ऐसे उन नटनागरके 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका है जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह।
( ६६ )
जो पूतना, बकासुर, अघासुर और धेनुकासुर आदि राक्षसोंके शत्रु हैं और केशी तथा तृणावर्तको पछाड़नेवाले हैं, हे जिह्वे ! उन असुरारि मुरारिके 'गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' - इस नामामृतका तू निरन्तर पान करती रह।
( ६७ )
'हे जानकीजीवन भगवान् राम ! हे दैत्यदलन भरताग्रज ! हे ईश ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' - इस नामामृतका है जिहे ! तू निरन्तर पान करती रह ।
( ६८ )
हे प्रह्लादकी बाधा हरनेवाले दयामय 'नृसिंह ! नारायण ! अनन्त ! हरे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका हे जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह ।
( ६९ )
हे जिह्वे ! जिन्होंने लीलाहीसे मनुष्योंकी-सी आकृति बनाकर, रामरूप प्रकट किया है और अपने प्रबल पराक्रमसे सभी भूपोंको दास बना लिया है, तू उन नीलाम्बुज श्यामसुन्दर श्रीरामके 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका ही निरन्तर पान करती रह ।
( ७० )
( ७१ )
गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
( ७० )
हे जिहे ! तू 'श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! हे नाथ ! नारायण ! वासुदेव ! तथा गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' - इस नामामृतका ही निरन्तर प्रेमपूर्वक पान करती रह ।
( ७१ )
अहो ! मनुष्योंकी विषयलोलुपता कैसी आश्चर्यजनक है ! कोई-कोई तो बोलनेमें समर्थ होनेपर भी भगवन्नामका उच्चारण नहीं करते; किन्तु हे जिह्वे! मैं तुझसे कहता हूँ, तू ' गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' - इस नामामृतका ही निरन्तर प्रेमपूर्वक पान करती रह ।