2025-12-12 03:49:34 by akprasad
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<p>गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
</p>
<p>( २५ )
</p>
<p text="B" n="25">केवल वायु, जल और पत्तोंके खानेसे जिनके शरीर पवित्र हो गये हैं, ऐसे प्रबालके समान शोभायमान लम्बी-लम्बी एवं कुछ अरुण रंगकी जटाओंवाले मुनिगण पवित्र वृक्षोंकी छायामें विराजमान होकर निरन्तर 'गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' इन नामोंका पाठ करते हैं ।
</p>
<p>( २६ )
</p>
<p text="B" n="26">श्रीवनमालीके विरहमें विह्वल हुई ब्रजाङ्गनाएँ उनके विषयमें विविध प्रकारकी बातें कहती हुई लोक-लजाको तिलाञ्जलि दे बड़े आर्त्तस्वरसे 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' कहकर जोर-जोरसे
रोने लगीं ।
</p>
<p>( २७ )
</p>
<p text="B" n="27">गोपी श्रीराधिकाजी किसी दिन मणियोंके पिंजड़ेमें पले हुए तोतेसे बार-बार 'आनन्दकन्द ! व्रजचन्द्र ! कृष्ण ! गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' इन नामोंको बुलवाने लगीं।
</p>
<p>( २८ )
</p>
<p text="B" n="28">कमलनयन श्रीकृष्णचन्द्रको किसी गोपबालककी चोटी बछड़ेकी पूँछके बालोंसे बाँधते देख मैया प्यारसे उनकी ठोढ़ीको पकड़कर कहने लगीं - 'मेरा गोविन्द ! मेरा दामोदर ! मेरा माधव !'
</p>
<p>( २९ )
</p>
<p text="B" n="29">प्रातःकाल हुआ, ग्वाल-बालोंकी मित्रमण्डली हाथोंमें वेतकी छड़ी और लाठी ले गौओंको चरानेके लिये निकली । तब वे अपने प्यारे सखा अनन्त आदिपुरुष श्रीकृष्णको 'गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' कह-कहकर बुलाने लगे ।</p>
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<p>गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
<p>( २५ )
<p text="B" n="25">केवल वायु, जल और पत्तोंके खानेसे जिनके शरीर पवित्र हो गये हैं, ऐसे प्रबालके समान शोभायमान लम्बी-लम्बी एवं कुछ अरुण रंगकी जटाओंवाले मुनिगण पवित्र वृक्षोंकी छायामें विराजमान होकर निरन्तर 'गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' इन नामोंका पाठ करते हैं ।
<p>( २६ )
<p text="B" n="26">श्रीवनमालीके विरहमें विह्वल हुई ब्रजाङ्गनाएँ उनके विषयमें विविध प्रकारकी बातें कहती हुई लोक-लजाको तिलाञ्जलि दे बड़े आर्त्तस्वरसे 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' कहकर जोर-जोरसे
रोने लगीं ।
<p>( २७ )
<p text="B" n="27">गोपी श्रीराधिकाजी किसी दिन मणियोंके पिंजड़ेमें पले हुए तोतेसे बार-बार 'आनन्दकन्द ! व्रजचन्द्र ! कृष्ण ! गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' इन नामोंको बुलवाने लगीं।
<p>( २८ )
<p text="B" n="28">कमलनयन श्रीकृष्णचन्द्रको किसी गोपबालककी चोटी बछड़ेकी पूँछके बालोंसे बाँधते देख मैया प्यारसे उनकी ठोढ़ीको पकड़कर कहने लगीं - 'मेरा गोविन्द ! मेरा दामोदर ! मेरा माधव !'
<p>( २९ )
<p text="B" n="29">प्रातःकाल हुआ, ग्वाल-बालोंकी मित्रमण्डली हाथोंमें वेतकी छड़ी और लाठी ले गौओंको चरानेके लिये निकली । तब वे अपने प्यारे सखा अनन्त आदिपुरुष श्रीकृष्णको 'गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' कह-कहकर बुलाने लगे ।</p>
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