2025-12-12 03:49:34 by akprasad
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<p>गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
</p>
<p>( २० )
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<p text="B" n="20">क्रीडाविहारी मुरारि बालकोंके साथ खेल रहे हैं [ अभीतक न स्नान किया है न भोजन ] अतः प्रेममें विह्वल हुई माता उन्हें स्नान और भोजनके लिये पुकारने लगी - 'अरे ओ गोविन्द ! ओ दामोदर ! ओ माधव ! [ आ बेटा ! आ ! पानी ठण्डा हो रहा है जल्दीसे नहा ले और कुछ खा ले ] ।'
</p>
<p>( २१ )
</p>
<p text="B" n="21">नारद आदि ऋषि 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इस प्रकार प्रार्थना करते हुए घरमें सुखपूर्वक सोये हुए उन पुराणपुरुष बालकृष्णकी शरणमे आये; अतः उन्होंने श्रीअच्युतमें तन्मयता प्राप्त कर ली ।
</p>
<p>( २२ )
</p>
<p text="B" n="22">वेदज्ञ ब्राह्मण प्रातःकाल उठकर और अपने नित्यनैमित्तिक कमको पूर्णकर वेदपाठके अन्तमें नित्य ही 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन मञ्जुल नामोंका कीर्तन करते हैं ।
</p>
<p>( २३ )
</p>
<p text="B" n="23">वृन्दावनमें श्रीवृषभानुकुमारीको बनवारीके वियोगसे विह्वल देख गोपगण और गोपियाँ अपने कमलनयनोंसे नीर बहाती हुई 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माघव !' आदि कहकर पुकारने
लगीं ।
</p>
<p>( २४ )
</p>
<p text="B" n="24">प्रातःकाल होनेपर जब गौएँ वनमें चरने चली गयीं तब उनकी रक्षाके लिये यशोदामैया शय्यापर शयन करते हुए बालकृष्णको मीठी-मीठी थपकियोंसे जगाती हुई बोलीं- 'बेटा गोबिन्द ! मुन्ना माधव ! लल्लू दामोदर ! [ उठ, जा गौओंको चरा ला ] ।'</p>
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<p>गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
<p>( २० )
<p text="B" n="20">क्रीडाविहारी मुरारि बालकोंके साथ खेल रहे हैं [ अभीतक न स्नान किया है न भोजन ] अतः प्रेममें विह्वल हुई माता उन्हें स्नान और भोजनके लिये पुकारने लगी - 'अरे ओ गोविन्द ! ओ दामोदर ! ओ माधव ! [ आ बेटा ! आ ! पानी ठण्डा हो रहा है जल्दीसे नहा ले और कुछ खा ले ] ।'
<p>( २१ )
<p text="B" n="21">नारद आदि ऋषि 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इस प्रकार प्रार्थना करते हुए घरमें सुखपूर्वक सोये हुए उन पुराणपुरुष बालकृष्णकी शरणमे आये; अतः उन्होंने श्रीअच्युतमें तन्मयता प्राप्त कर ली ।
<p>( २२ )
<p text="B" n="22">वेदज्ञ ब्राह्मण प्रातःकाल उठकर और अपने नित्यनैमित्तिक कमको पूर्णकर वेदपाठके अन्तमें नित्य ही 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन मञ्जुल नामोंका कीर्तन करते हैं ।
<p>( २३ )
<p text="B" n="23">वृन्दावनमें श्रीवृषभानुकुमारीको बनवारीके वियोगसे विह्वल देख गोपगण और गोपियाँ अपने कमलनयनोंसे नीर बहाती हुई 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माघव !' आदि कहकर पुकारने
लगीं ।
<p>( २४ )
<p text="B" n="24">प्रातःकाल होनेपर जब गौएँ वनमें चरने चली गयीं तब उनकी रक्षाके लिये यशोदामैया शय्यापर शयन करते हुए बालकृष्णको मीठी-मीठी थपकियोंसे जगाती हुई बोलीं- 'बेटा गोबिन्द ! मुन्ना माधव ! लल्लू दामोदर ! [ उठ, जा गौओंको चरा ला ] ।'</p>
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