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स्वच्छ रखना चाहिए । इन्द्र ने वृत्र नाम के असुर को मारने से

उत्पन्न पाप स्नान करके ही दूर किया था[^१] ॥ ३ ॥
 
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न कुर्वीत क्रियां कांचिदनभ्यर्च्य महेश्वरम् ।

ईशार्चनरतं श्वेतं नाभून्नेतुं यमः क्षमः ॥ ४ ॥
 
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भगवान् महेश्वर की पूजा किये बिना कोई काम न करना चाहिए ।

ईश्वर की अर्चना में लगे रहने के कारण ही श्वेत-मुनि को यमराज

यमपुरी ले जाने में असमर्थ रहें ॥ ४ ॥
 
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श्राद्धं श्रद्धान्वितं कुर्याच्छास्त्रोक्तेनैव वर्त्मना ।

भुवि पिण्डं ददौ विद्वान् भीष्मः पाणौ न शन्तनोः ॥ ५ ॥
 
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श्रद्धापूर्वक शास्त्रों में बताई गयी विधि के अनुसार ही श्राद्ध करना

चाहिए। शास्त्र पर श्रद्धा करने के कारण ही विद्वान् भीष्म ने अपने पिता

शन्तनु के हाथों में पिण्ड न दे कर भूमि पर ही पिण्ड को रख दिया ॥५॥
 
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नोत्तरस्यां प्रतीच्यां वा कुर्वीत शयने शिरः ।

शय्याविपर्ययाद् गर्भो दितेः शक्रेण पातितः ॥ ६ ॥
 
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उत्तर और पश्चिम की ओर सिरहाना करके नहीं सोना चाहिये ।

शय्या के उलट-फेर के कारण ही दिति के पुत्र दैत्य का विनाश इन्द्र

ने गर्भ में ही कर दिया था ॥ ६ ॥
 
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अर्थिभुक्तावशिष्टं यत् तदश्नीयान्महाशयः ।

श्वेतोऽर्थिरहितं भुक्त्वा निजमांसाशनोऽभवत् ॥ ७ ॥
 
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भिखमंगों, याचकों को कुछ देकर ही भोजन करना चाहिए ।
 
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<footnote lang="hi" mark="
१.] ">यह पौराणिक कथा है । इस प्रकार की जिन-जिन पौराणिक

कथाओं की चर्चा इस पुस्तक में की गई है, सभी का सांगोपांग उल्लेख

चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित 'हिन्दी चारुचर्या' नामक

पुस्तक में किया गया है ।
 
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