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<p lang="ssubtitle lang="sa" text="mula">॥ श्रीः ॥</p>
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a">चारुचर्या</p>
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<subtitle lang="sa" text="mul
a">'प्रकाश' हिन्दीव्याख्योपेता</psubtitle>
<verse lang="sa" text="mula" n="1">श्रीलाभसुभगः सत्यासक्तः स्वर्गापवर्गदः ।
जयतात् त्रिजगत्पूज्यः सदाचार इवाच्युतः ॥ १ ॥</verse>
<p lang="hi" text="anuvada" n="1">अच्युत भगवान् की तरह तीनों लोकों में पूज्य सदाचार
विजयी हो। अच्युत भगवान् की भाँति सदाचार भी स्वर्ग और मोक्ष
प्रदान करता है। भगवान् और सदाचार दोनों श्री-सम्पन्न होकर
सौभाग्यशाली हैं। अच्युत भगवान् सत्या (सत्यभामा) में अनुरक्त
हैं तो सदाचार सत्य में आसक्त है ॥ १ ॥</p>
<verse lang="sa" text="mula" n="2">ब्राह्मे मुहूर्ते पुरुषस्त्यजेन्निद्रामतन्द्रितः ।
प्रातः प्रबुद्धं कमलमाश्रयेच्छ्रीर्गुणाश्रया ॥ २ ॥</verse>
<p lang="hi" text="anuvada" n="2">मनुष्य को ब्राह्ममुहूर्त में आलस्य छोड़कर जाग जाना चाहिए ।
गुणों का आश्रय लेनेवाली श्री (शोभा) प्रातःकाल खिले हुए
(जागे हुए) कमल पर जा विराजती है ॥ २ ॥</p>
<verse lang="sa" text="mula" n="3">पुण्यपूतशरीरः स्यात् सततं स्नाननिर्मलः ।
तत्याज वृत्रहा स्नानात् पापं वृत्रवधार्जितम् ॥ ३ ॥</verse>
<p lang="hi" text="anuvada" n="3" merge-text="true">पुण्य-कार्यों से शरीर को सदैव पवित्र और स्नान द्वारा उसे</p>
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