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दो शब्द
 
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सदाचार शिष्टाचार-विषय की यह छोटी-सी पुस्तक कश्मीरी

महाकवि क्षेमेन्द्र ने लिखी है । मूल श्लोकों की व्याख्या करने का

मेरा एकमात्र उद्देश्य यही है कि हमारी वर्तमान सन्तान चरित्र

की ऊँचाई और गहराई समझकर उसपर आचरण करें | आचरण

की सभ्यता को अपनाएँ, प्यार करें। हमारी वर्तमान शिक्षा-प्रणाली

में चरित्रबल बढ़ाने की कोई योजना नहीं है और न कोई

लक्ष्य ही रखा गया है। यही कारण है कि विद्यार्थिवर्ग उत्तरोत्तर

उच्छृङ्खल और बे-लगाम होता जा रहा है, यह उनका दोष

नहीं, उनके अभिभावकों, शिक्षकों की दुर्बलता नहीं बल्कि शिक्षा

का दोष है।
 
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यही हमारी शिक्षा-पद्धति में अन्य विषयों की भाँति चरित्र की

शिक्षा देने की भी सुविधा हो जाए तो होनहार राष्ट्रनिर्माता विद्यार्थी,

स्वदेश, स्ववेष के प्रति अनुरागी बन सकते हैं ।
 
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चारुचर्या में ऐसी ही शिक्षा दी गई है कि बालक या प्रौढ

अपने कर्त्तव्य के प्रति सजग, सावधान होकर नियमित-संयमित जीवन

व्यतीत कर सकें ।
 
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श्लोकों का अर्थ लिख देने के बाद भाषा की सरलता सुबोधता

पर भी विशेष ध्यान रखा गया है । आशा है हमारा प्रयास

लोकोपयोगी सिद्ध होगा।
 
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--देवदत्तशास्त्री
 
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