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रूपार्थकुलविद्यादिहीनं नोपहसेन्नरम् ।

हसन्तमशपन्नन्दी रावणं वानराननः ॥ ८७ ॥
 
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रूप, द्रव्य, कुल और विद्या आदि से हीन पुरुष की हँसी कभी

नहीं करनी चाहिये । वानररूपधारी नन्दी ने अपना उपहास करने

वाले रावण को शाप दे दिया था । ८७ ॥
 
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बन्धूनां वारयेद् वैरं नैकपक्षाश्रयो भवेत् ।

कुरुपाण्डवसङ्ग्रामे युयुधे न हलायुधः ॥ ८८ ॥
 
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भाई-भाई के बीच उत्पन्न वैरभाव को दूर करने का उपाय करना

चाहिए । किसी एक का पक्ष ग्रहण कर उनके वैर को बढ़ाना न

चाहिए । कौरवों और पाण्डवों के युद्ध में बलरामजी निष्पक्ष ही

बने रहे ॥ ८८ ॥
 
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परोपकारं संसारसारं कुर्वीत सत्त्ववान् ।

निदधे भगवान् बुद्धः सर्वसत्त्वोद्धृतौ धियम् ॥ ८९ ॥
 
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परोपकार ही संसार का सार है । ऐसा समझकर सभी जीवों के

साथ उपकार करना चाहिए। भगवान् बुद्ध ने सभी जीवों का उद्धार

करने की ही बुद्धि रखी ॥ ८९ ॥
 
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विभृयाद् बन्धुमधनं मित्रं त्रायेत दुर्गतम् ।

बन्धुमित्रोपजीव्योऽभूदर्थिकल्पद्रुमो बलिः ॥ ९० ॥
 
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गरीब भाई का भरण-पोषण करना चाहिए । मित्र की विपत्ति से

रक्षा करनी चाहिए । बन्धुओं और मित्रों के साथ ऐसा ही व्यवहार

करने से बलि याचकों का कल्पवृक्ष बना हुआ था ॥ ९० ॥
 
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न कुर्यादभिचारोग्रवध्यादिकुहकाः क्रियाः ।

लक्ष्मणेनेन्द्रजित् कृत्याद्यभिचारमयो हतः ॥ ९१ ॥</verse>
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