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<verse lang="sa" text="mula" n="25">अविस्मृतोपकारः स्यान्न कुर्वीत कृतघ्नताम् ।
हत्वोपकारिणं विप्रो नाडीजङ्घमधश्च्युतः ॥ २५ ॥</verse>
<p lang="hi" text="anuvada" n="25">उपकार को भूलकर मनुष्य को कृतघ्न न होना चाहिये । उपकार
करने वाले नाडीजंघ नाम के बगुले को मारकर ब्राह्मण पतित हो
गया था ॥ २५ ॥</p>
<verse lang="sa" text="mula" n="26">स्त्रीजितो न भवेद् धीमान् गाढरागवशीकृतः ।
पुत्रशोकाद् दशरथो जीवं जायाजितोऽत्यजत् ॥ २६ ॥</verse>
<p lang="hi" text="anuvada" n="26">बुद्धिमान् मनुष्य को प्रगाढ प्रेम में पड़कर स्त्री के वशीभूत न
होना चाहिए । स्त्री के वशीभूत होने से ही राजा दशरथ को पुत्र-
शोक से प्राण छोड़ने पड़े ॥ २६ ॥</p>
<verse lang="sa" text="mula" n="27">न स्वयं संस्तुतिपदैर्ग्लानिं गुणगणं नयेत् ।
स्वगुणस्तुतिवादेन ययातिरपतद् दिवः ॥ २७ ॥</verse>
<p lang="hi" text="anuvada" n="27">स्वयं अपनी प्रशंसा करके अपने गुणों को मलिन न बनाना
चाहिए । अपने गुणों की प्रशंसा करने के कारण ही ययाति स्वर्गलोक
से पतित हुये ॥ २७ ॥</p>
<verse lang="sa" text="mula" n="28">क्षिपेद् वाक्यशरांस्तीक्ष्णान्न पारुष्यव्युपप्लुतान् ।
वाक्पारुष्यरुषा चक्रे भीमः कुरुकुलक्षयम् ॥ २८ ॥</verse>
<p lang="hi" text="anuvada" n="28">कठोरता से भरे, बाण जैसे चुभने वाले तीखे वाक्य नहीं बोलना
चाहिए । वाणी की कठोरता से उत्पन्न क्रोध के कारण ही भीम ने
कुरुवंश का नाश कर डाला ॥ २८ ॥</p>
<verse lang="sa" text="mula" n="29">परेषां क्लेशदं कुर्यान्न पैशुन्यं प्रभोः प्रियम् ।
पैशुन्येन गतौ राहोश्चन्द्रार्कौ भक्षणीयताम् ॥ २९ ॥</verse>
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