माला का द्वितीय कमल
श्रीसूक्त
और
आदित्यहृदय स्तोत्र
संग्रहकर्ता और अनुवादक
कमला
प्रकाशक -
तुलसी मीमांसा परिषद्, भदैनी, काशी ।
मुद्रक-
पं० पद्मनारायण आचार्य
पद्म प्रेस, वांसफाटक, काशी ।
प्रथमावृत्ति १००० ] सन् १९४०
[ मूल्य =)
विषय सूची
भूमिका में पाठ करने की विधि
१. श्रीसूक्त
२. लक्ष्मीसूक्त
३. लक्ष्मीस्तोत्र
४. गणेशाष्टक
५.आदित्यहृदय
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हे भगवती मा मुझे क्षमा करो तुम क्षमा शील हो बड़े से भी
बड़ी हो ( पिता विष्णु से भी बड़ी हो ), शुद्धसत्त्व ही तुम्हारा स्वरूप है ( तुम में रजोगुण और तमोगुण नाम के लिए भी नहीं है), क्रोध, लोभ आदि दोषों से तुम बहुत दूर हो ॥ १ ॥
तुम सब अच्छी ( साध्वी ) स्त्रियों की उपमा हो, देवताओं ने भी तुम्हारी पूजा की है। तुम्हारे बिना सारा जगत् मुर्दा के समान और निष्फल है ॥ २ ॥
तुम सभी प्रकार की संपत्ति का स्वरूप हो, हर एक के लिए चाहे जिस रूप को तुम रास की रानी और मालकिन हो, सभी स्त्रियां तुम्हारी कला मात्र है ॥ ३ ॥
कैलाश पर तुम पार्वती हो, क्षीर सागर में तुम लक्ष्मी हो, स्वर्ग में तुम महालक्ष्मी हो, और पृथ्वी पर नारी रूपा लक्ष्मी हो ॥ ४ ॥
बैकुंठ में तुम महालक्ष्मी महादेव को देवी और सरस्वती हो, तुम्ही गंगा, तुलसी और सावित्री हो ॥ ५ ॥
कृष्णप्राणाधिदेवी त्वं गोलोके राधिका स्वयम् रासे रासेश्वरी त्वं च वृंदावनवने वने ॥ ६ ॥
तुम्ही कृष्ण की प्राणाधिदेवी हो, तुम्हीं गोलोक में स्वयं राधिका हो तुम्ही वृन्दावन के वन में रासकी रासेश्वरी हो ॥ ६ ॥
तुम भांडीर में कृष्ण की प्रिया हो चन्दन के वन में चन्द्रा हो चंपक वन में विरजा हो और शतशृंग में सुंदरी हो ॥ ७ ॥
पद्मवन में पद्मावती, मालती वन में मालती, कुंदवन में कुंददन्ती और केतकी वन में सुशीला हो ॥ ८ ॥
हे देवि तुम कदंब कानन में कदंब माला हो, राजगृह में राजलक्ष्मी और घर घर में गृह लक्ष्मी हो ॥ ९ ॥
ऐसा कह कर सभी देवता, मुनि और मनुष्य रोपड़े, वे मुख नीचे किए हुए थे और उन के कंठ, ओठ और तालू सूख गएथे ॥१०॥
इस प्रकार जिस पुण्य लक्ष्मी स्तव की सब देवताओं ने किया था उसे जो सबेरे उठकर पाठ करेगा वह निश्चय ही सब कुछ पावेगा ॥ ११ ॥
स्त्री हीन मनुष्य विनीत और पुत्र वाली, सती, सुशील, सुंदर, रम्य और मीठा बोलनेवाली, शुद्ध, कुलीन, कोमल वस्त्रों वाली स्त्री. पाता है और पुत्र हीन चिरजीवी वैष्णव पुत्र पाता है। जो परम ऐश्वर्य युक्त, विद्यावाला और यशस्वी हो । भ्रष्ट राज्य मनुष्य राज पाता है और भ्रष्ट श्री अपनी खोई श्री को पा जाता है। भाई हीन भाई की और धन हीन धन पाता है। कीर्ति हीन कीर्ति और प्रतिष्ठा को पाता है। यह सर्व मंगलों को देनेवाला स्तोत्र शोक संतापका नाश करता है, हर्ष और आनंद बढ़ाता है, धर्म, मोक्ष और मित्रों को देता है । १२-१३-१४-१५-१६ ॥
जिस की शक्ति का कोई अन्त नही है, जिस से अनन्त जीव उत्पन्न हुए हैं, जो ( स्वयं ) निर्गुण है पर जिस से तेरे असंख्य गुण उत्पन्न हुए हैं, जिस के कारण ही यह सब ( जगत् ) सत्त्व, रज, तम के तीन भेदों में बंटा हुआ मालुम पड़ता है उस गणेश को सदा प्रणाम करते हैं ॥ १ ॥
यतश्चाविरासीज्जगत्सर्वमेतत्तथान्जासनो विश्वगो विश्वगोप्ता तथेंद्रादयो देवसंघा मनुष्याः सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥२॥
जिस से यह सब जगत् उत्पन्न हुआ था, स्वयं ब्रह्मा, और विश्व व्यापी विष्णु उत्पन्न हुए, और जिस से इन्द्रादि देव संघ के साथ मनुष्य भी उत्पन्न हुए उस गणेश को प्रणाम करता हूं, भजता हूँ ॥ २ ॥
जिस से अग्नि, सूर्य, शंकर, पृथिवी, जल, सागर, चन्द्रमा, आकाश, वायु उत्पन्न हुए हैं जिससे स्थावर और जंगम, ( सभी प्रकार के ) वृक्ष उत्पन्न हुए हैं उस गणेश को हम सदा प्रणाम करते हैं और भजते हैं ॥ ३ ॥
यतो दानवाः किन्नरा यक्षसंघा यतश्चारणा वारणाः श्वापदाश्च यतः पक्षिकीटा यतो वीरुधश्च सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥४॥
जिससे दानव, किन्नर, यक्ष, चारण, वारण ( हाथी ) श्वापद
(शिकारी पशु ) पक्षी, कीडे और लताकी उत्पत्ति हुई है उस गणेश को हम नमस्कार करते और सदा भजते हैं ॥ ४ ॥
जिस से मुमुक्षु को बुद्धि होती है और अज्ञान का नाश होता है, जिस से भक्त का संतोष देनेवाली संपदाएं उत्पन्न होती है। जिस से विघ्न नाश होता है, जिस से कार्य की सिद्धि होती है सदा हम उसी गणेश को ॥ ५ ॥
यतः पुत्रसंपद्यतो वाञ्छितार्थो यतोऽभक्तविघ्नास्तथाऽनेकरूपाः यतः शोकमोहौ यतः काम एव सदा तं गणेशं नमामो भजामः ।६।
जिस से पुत्र की संपदा मिलती जिस से मन चाही चीज मिलती है, जिस से अभक्तों को बहुत प्रकार के विघ्न होते हैं जिस से शोक मोह होते हैं जिस से काम उत्पन्न होता है उसी गणेश को ॥ ६ ॥
जिस से अनंत शक्तिवाले शेष उत्पन्न हुए थे जो अनेक रूप से पृथिवी को धारण करते हैं । जिस से अनेक प्रकार के स्वर्ग उत्पन्न हुए हैं उसी गणेश का हम नमस्कार करते हैं ॥ ७ ॥
जहां वेद की ऋचाएं भी कुंठित हो जाती हैं और वे भी जिसे नेति नेति कह कर सदा बखानती हैं उस परब्रह्म रूप और चिदानंद स्वरूप गणेश की हम सदा नमस्कार करते और भजते हैं ॥ ८ ॥
फिर गणेश जी बोले, इस स्तोत्र का तीनो सन्ध्याओं में तीन दिवस तक पाठ करने वाले के सब कार्य सिद्ध हो जांयगे ॥ ९ ॥
इन कल्याणप्रद आठ श्लोकों का आठ दिवस तक या चतुर्थी को ही आठ बार पाठ करने वाले को अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ॥ १० ॥
एक महीने तक प्रतिदिन दस बार पाठ करने से राजशासनानुसार वध दण्ड के योग्य बन्दी को भी छुड़ा लेता है ॥ ११ ॥
भक्ति-पूर्वक श्रीगणेश का भजन करते हुए इस स्तोत्र के इक्कीस आवृत्तियों से, विद्यार्थी विद्या, पुत्र की कामना करने वाला पुत्र, तथा अन्य पदार्थों की इच्छा रखने वाला इष्ट वस्तु, प्राप्त कर लेता हैं। समर्थ श्रीगणेश देव इस तरह फल श्रुति कहने के बाद अन्तर्धान होगये ॥ १२-१३ ।
राम युद्ध करते करते थक गए थे। रावण को अपने सामने युद्ध के लिए तैयार देखकर वे चिन्तासे युद्धस्थल में खड़े थे ॥ १ ॥
देवताओं के साथ रण देखने को भगवान् अगस्त ऋषि भी आए हुए थे। वे राम के पास जाकर बोले ॥ २ ॥
हे राम, तुम्हारी बाहें तो बहुत बड़ी है (तुम बहुत बली हो पर) मैं एक पुराना रहस्य बताता हूँ उसे सुनो जिस से, बेटा, तुम युद्ध में सब शत्रुओं को जीत सकोगे ॥ ३ ॥
आदित्य हृदय स्तोत्र पुण्य कर और सभी प्रकार के शत्रुओं को नाश करनेवाला है। ऐसे परम शिव और जय लाने वाले अक्षय्य स्तोत्र का नित्य जप करना चाहिए ॥ ४ ॥
तुम उदय होते हुए सूर्य की पूजा करो। वह सभी मंगल मागल्यों से भरे हुए है, सब पापो के नाशन हैं, चिन्ता और शोकके मिटानेवाले आयु के बढाने वाले और सब से ऊपर रहने वाले (उत्तम) है। वे किरणमय है, देवता और असुर सभी उनको नमस्कार करते हैं, वे प्रकाश करनेवाले विवस्वान् और भुवनों के ईश्वर हैं ५/६
यह तेजस्वी रश्मि भावन सूर्य सभी देवताओं की आत्मा हैं। यह देवासुरों तथा अन्य लोगों को अपनी किरणों से पालते हैं ॥ ७॥
यही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द प्रजापति, महेन्द्र, धनद ( कुबेर ), काल, यम सोम और जल के पति ( वरुण ) हैं ॥ ८ ॥
यही पितृगण, वसुगण, साध्यगण, दोनों अश्विनी कुमार, मनद्गण और मनु हैं। यही बायु, अग्नि, प्रजाप्राण, ऋतुकर्त्ता और प्रभाकर हैं ॥ ९ ॥
आदित्य, सविता, सूर्य, खग, पूषा, गभस्तिमान्, सुवर्ण के समान, भानु और स्वर्णरेता, दिवाकर हैं। यही हरिदश्व, सहश्रार्चि सप्त सप्ति, मरीचिमान, तिमिरोन्मथन शंभु, त्वष्टा, मार्तण्ड, अंशुमान्, हिरण्यगर्भ, शिशिर, तपन, भास्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदिति का पुत्र, शङ्ख और शिशिर नाशन हैं ॥ १०-११-१२ ॥
यही व्योमनाथ, तमोभेदी और ऋग्यजुः साम ( तीनों वेदके पारंगत विद्वान्) यही घन वृष्टि, अपां मित्र और विन्ध्याटवी के ऊपर उछलनेवाले हैं ॥ १३ ॥
यही आतपी, मण्डली, मृत्यु, पिङ्गल, सर्वतापन, कवि, विश्व, महातेजा, रक्त और सर्वभवोद्भव हैं ॥ १४ ॥
यही नक्षत्र, ग्रह और ताराओंके राजा और विश्व की भावना ( स्थिति ) के कारण हैं। यह तेजोंमें तेजस्वी है, हे द्वादशात्मन्, तुम्हें नमस्कार है ॥ १५ ॥
पूर्व गिरि को नमस्कार, पश्चिमी पहाड़ को नमस्कार और ज्योतिगणोंके पति तथा दिन के अधिपति को नमस्कार है ॥ १६ ॥
जय, जयभद्र और हर्यश्वको नमस्कार । हे सहस्रांशो नमो नमः । आदित्य को मेरा नमस्कार है। उग्र वीरको, सारङ्गको पद्म प्रबोध और मार्तण्डको मेरा नमस्कार है ॥ १७-१८ ॥
ब्रह्मा इशान और अच्युतके ईश, सूर्य, आदित्यवर्चस, भगवान्, सर्वभक्ष और, रौद्र शरीरको नमस्कार ॥ १९ ॥
तम, हिम और शत्रुके नाश करनेवाले अमितात्मा वाले , कृतघ्नको मारनेवाले देव और ज्योतियोंके पतिको नमस्कार ॥२७॥
तपे हुए सोने के समान शोभावाले, वहन करनेवाले, विश्वकर्मा, तमको नाश करनेवाले, लोकके साक्षी रविको नमस्कार ॥ २१ ॥
यही उपन्न सृष्टिको नाश करते हैं और उसीके फिर वही प्रभु
उत्पन्न करते हैं। यही अपनी किरणों से पिलाते हैं यही तपते हैं और यही बरसते हैं ॥ २२ ॥
यह सव प्राणियों के सो जाने पर सबके भीतर बैठे हुए जागते रहते हैं। यह अग्निहोत्र हैं और यही अग्निहोत्रियों के फल हैं ॥ २३ ॥
वेद, ऋतु, ऋतुका फल, और लोगों में जो कृत्य होते हैं वह सब कुछ यही रवि प्रभु हैं ॥ २४ ॥
हे राघव, आपत्ति, कठिनाई, जंगल, और भयमें इनका नाम लेनेसे कोई भी पुरुष दुःखी नहीं होता ॥ २५ ॥
एकाग्र होकर इन जगत्पति देवदेवकी पूजा करो। इस स्तोत्र का तीन बार जप करने पर युद्धोंमें विजयी हो जाओगे ॥ २६ ॥
इस क्षणमें हे महाबाहु राम तुम रावणको मारोगे। ऐसा कहकर अगस्त्य जहां से आए थे वहीं लौट गए ॥ २७ ॥
इतना सुनकर महा तेजस्वी राम का शोक दूर हो गया और शुद्ध और आत्मवान् होकर प्रसन्नता से उन्होंने इसे धारण किया ( इसका अनुष्ठान किया ) ॥ २८ ॥
आदित्यका दर्शन करके और इसका जप करके वे बड़े हर्षित होकर तीनबार आचमन करके और शुचि होकर वीर्यवान् रामने आयुध उठाया। फिर रावणको देखकर हर्षसे भरी हुई आत्मावाले राम युद्धके लिए चल पड़े। और सब उपायों से बड़े ध्यान से वे उसके वधके लिए लग गये इसी समय देवगणके बीच में से सूर्यने रावणकी मृत्यु समझकर और रामको देखकर बड़े प्रसन्न मनसे हर्षित होते हुए कहा- 'जल्दी करो' ॥ २९-३०-३१ ॥