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<p text="F" n="27">
इस क्षणमें हे महाबाहु राम तुम रावणको मारोगे। ऐसा

क​हकर अगस्त्य जहां से आए थे वहीं लौट गए ॥ २७ ॥
 
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<verse text="E" n="29">
एतछ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा ।

धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥ २८ ॥
 
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<p text="F" n="28">
इतना सुनकर महा तेजस्वी राम का शोक दूर हो गया और

शुद्ध और आत्मवान् होकर प्रसन्नता से उन्होंने इसे धारण

किया ( इसका अनुष्ठान किया ) ॥ २८ ॥
 
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<verse text="E" n="30">
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान् ।

त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादय वीर्यवान् ॥. २६ ॥
 
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<verse text="E" n="31">
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत् ।

सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत् ॥ ३० ॥
 
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<verse text="E" n="32">
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।

निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति <fix>॥</fix>३१
 
<fix>॥</fix></verse>
<p text="F" n="29-31">
आदित्यका दर्शन करके और इसका जप करके वे बड़े हर्षित

होकर​ तीनबार आचमन करके और शुचि होकर वीर्यवान् रामने

आयुध​ उठाया। फिर रावणको देखकर हर्षसे भरी हुई आत्मावाले

राम युद्धके लिए चल पड़े। और सब उपायों से बड़े ध्यान से वे

उसके व​धके लिए लग गये इसी समय देवगणके बीच में से सूर्यने

रावणकी मृत्यु समझकर और रामको देखकर बड़े प्रसन्न मनसे

हर्षित होते हुए कहा- 'जल्दी करो' ॥ २९-३०-३१ ॥
 
 
 
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