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<p text="F" n="22">
उत्पन्न करते हैं। यही अपनी किरणों से पिलाते हैं यही त​पते हैं

और यही ब​रसते हैं ॥ २२ ॥
 
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<verse text="E" n="24">
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।

एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥ २३ ॥
 
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<p text="F" n="23">
यह सव प्राणियों के सो जाने पर सबके भीतर बैठे हुए

जागते रहते हैं। यह अग्निहोत्र हैं और यही अग्निहोत्रियों के

फल हैं ॥ २३ ॥
 
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<verse text="E" n="25">
वेदाश्च क्रतवश्चैव ऋतूनां फलमेव च ।

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः ॥ २४ ॥
 
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वेद, ऋतु, ऋतुका फल, और लोगों में जो कृत्य होते हैं वह

सब कुछ यही रवि प्रभु हैं ॥ २४ ॥
 
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<verse text="E" n="26">
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।

कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥ २५ ॥
 
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हे राघव, आपत्ति, कठिनाई, जंगल, और भयमें इनका नाम

लेनेसे कोई भी पुरुष दुःखी नहीं होता ॥ २५ ॥
 
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<verse text="E" n="27">
पूजयस्वेनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।

एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥ २६ ॥
 
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एकाग्र होकर इन जगत्पति देवदेवकी पूजा करो। इस स्तोत्र

का तीन बार जप करने पर युद्धोंमें विजयी हो जाओगे ॥ २६ ॥
 
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<verse text="E" n="28">
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि

एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम् ॥ २७ ॥
 
 
 
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