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<title text="E">
आदित्य हृदयम्
 
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<verse text="E" n="1">
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।

रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥ १ ॥
 
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<p text="F" n="1">
राम युद्ध करते करते थक गए थे। रावण को अपने सामने

युद्ध के लिए तैयार देखकर वे चिन्तासे युद्धस्थल में खड़े थे ॥ १ ॥
 
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<verse text="E" n="2">
दैवतैश्च समागम्य दृष्टुमभ्यागतो रणम् ।

उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्योभगवानृषिः ॥ २ ॥
 
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<p text="F" n="2">
देवताओं के साथ रण देखने को भगवान् अगस्त ऋषि भी

आए हुए थे। वे राम के पास जाकर बोले ॥ २ ॥
 
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<verse text="E" n="3">
राम राम महाबाहो श्रुणु गुह्यं सनातनम् ।

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि ॥ ३ ॥
 
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<p text="F" n="3">
हे राम, तुम्हारी बाहें तो बहुत बड़ी है (तुम बहुत बली हो पर)

मैं एक पुराना रहस्य बताता हूँ उसे सुनो जिस से, बेटा, तुम युद्ध में

सब​ शत्रुओं को जीत सकोगे ॥ ३ ॥
 
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<verse text="E" n="4">
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।

जयावहं जपेन्नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥ ४ ॥
 
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<p text="F" n="4">
आदित्य हृदय स्तोत्र पुण्य कर और सभी प्रकार के शत्रुओं को

नाश करनेवाला है। ऐसे परम शिव और जय लाने वाले अक्षय्य

स्तोत्र का नित्य जप करना चाहिए ॥ ४ ॥
 
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<verse text="E" n="5">
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।

चिन्ताशोकमशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥ ५ ॥
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<verse text="E" n="6">
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।

पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥ ६ ॥
 
 
 
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